Sunday, March 24, 2013

यूँ है की बस...

यूँ है की बस परछाई साथ है 
अँधेरा होते होते वो भी छोड़ जाती है 
लगता है दो वक़्त की रोटी के लिए 
कहीं ज्यादा दूर निकल आये हैं 
डेढ़ रोज़ हो चले हैं न अपनों से बात कोई 
ना दुश्मनों से मुलाकात कोई ..

Sunday, June 24, 2012

दिल न बिका ...


दिलों  का  बाज़ार  लगा  था 
नीलामी  की  अर्जी  हमने  भी  लगा  दी 
हजारो  लाखो  की  भीड़  में ,
 दुकान  हमने  भी  सजा  डाली 

सुबह  के  बैठे  थे , शाम  हो  आई 
पर  कोई  खरीददार  नहीं  मिला 
कम  कुछ  हम  भी  कहाँ 
एक  बार  फिर  बोली  लगा  डाली 

कमबख्त  रात  हो  आई  .
अब  कुछ  किरायेदार  बचे  थे 
वो  भी  किराया  कम  दे  रहे  थे 
दिल  का  हमारे  मोल  भाव  कर  रहे  थे 

दोष  न  जाने  इस  दिल  का  था 
या  कमी  हमारी  दूकान  में  थी 
पर  क्या  करे  दिल  तो  बेचना  ही  था 
प्यार  की  कुछ  किश्ते  जो  चुकानी  थी 

पर   ये  दिल  न  बिका 
न  जाने  इसे  कोई  क्यूँ  न  मिला 

ये टूटा  दिल  खुद   से  बोला  
घबराता  क्यूँ  है  मुसाफिर 
अगले  साल  फिर  चले  आना 
ये  बाज़ार  तो  हर  साल  लगता  है  ..

Tuesday, November 8, 2011

मैं ना मिला...

खो गया हूँ खुद की तलाश में

किस नुक्कड़ बैठा, किस गली भटका

भरी धुप में दूर तक चला मैं

ताड़ा हर कोना , इंतज़ार भी किया मैंने

पर मैं ना मिला

धोखा मिला

दुःख से भी मुलाकात हुई

चलती फिरती मुस्कुराहटें मिली

धुंधली सी मंजिल की कई राहें भी मिली

सुख दूर से देख के चला गया

गम का तो क्या ज़िक्र करूँ

वो तो आया चीर के निकल गया

दर्द से दोस्ती हुई

दर्द ने चलना सीखाया

खुशियों से मेल कराया

फिर दर्द रहा चला गया कहीं

अब खुशिया थी ,जो ताने मारती थी

एक दिन आया वो भी चली गयी

साथी सब चले गए

हाथ खाली रह गए

कदम रुके थे उस जगह अभी

चले थे जहाँ से कभी

तलाश थी किसी एक की

ज़िन्दगी ने बहुत से मिलाया

सब कुछ मिला

मैं ना मिला ..मैं ना मिला

Sunday, May 29, 2011

ज़रा गलत फ़हमी हो गयी ....

खुशियों में डूबा शहर था ,

गम की धूप निकल आई

तकलीफ हुई शुरुआत में थोड़ी ,

फिर ये धूप ही तो बादल लाई |

मतलब नहीं मुझे ख़ुशी से

कोई नाता दुःख से रखना है ,

गलियों को तो इंतज़ार है बस बारिस का

मेरा जहाज जो चलाना है |

एक दिन मौसम साफ़ था

गलियों में धूप का कहर था

शाम को दिल में आराम था

क्यूंकि आसमाँ थोडा श्याम था

इंतज़ार था उनके बरसने का

ज़रा गलत फ़हमी हो गयी

मिलने मुझसे वो हवा गयी

वो मेरी गलियां सुखी रह गयी


पर ये सुना था कहीं , खोना होंसला कभी

हुई बारिस तो क्या , भरी वो गलिया तो क्या

जो क्या हुआ जहाज को चला सका ,

हम तो इसे उड़ाकर काम चला लेंगे | |

Wednesday, February 9, 2011

भूल गया है कोई....



जैसे दूर तक फैला सागर
डूब गया हु जैसे उसमे
तैरा तो पर कब तक तैरुं
दिखे कहीं किनारा तो

ऐसा विशाल मरुस्थल फैला
चला मै राही राह बटोहता
चलते चलते गया वो सूरज
फिर बिन किरणों के वो निकला

कैसी अद्भुत चीज़ ये पृथ्वी
बन गयी है भूल भुलैया
मिले न कोई दिखे न कोई
जैसे रख के भूल गया है कोई..

Friday, January 28, 2011

सपनो में आये ......

बंद आँखों के नजारों में,वो दबे पाँव चली आये
जो आँखे खोलूँ तो, न जाने किधर ओझल हो जाये

सपनो भरी दुनिया में आकर, वो मेरा चैन चुराए
देखूँ उसे वाकई में तो ,बिन मौसम बादल बरस जाये

खिले जब वो चाँद सा चेहरा, सूरज भी फीका पड़ जाए
काला पत्थर सोना हो जाये, जब अधरों पे उसके मुस्कान आये

गुजरे जिस जगह से वो ,सर्दी में भी गर्मी आये
जो निकले सज सँवर के वो ,तो खूबसूरती खुद शर्माए

बसंत पंचमी लौट के आये , सुबह जब वो अपनी पलके उठाये
स्पर्श उसके हाथो का , हर फूल को गुलाब कर जाए

रूठे वो तो , मनाने उसको चंदा खुद जमीं पे उतर आये
जो रोये वो , तो मरू भी एक विशाल सागर बन जाए

उसकी एक अदा भी हाय, हजारो दिलो को चुरा ले जाये
कोई क्या बिगाड़े उसका, उसकी एक नज़र ही क़त्ल कर जाए

सपनो जैसी दुनिया मेरी, वो आकर के असल बनाए
फिर ना जाने क्यों ये सुन्दरता, सिर्फ मेरे सपनो में आये ..

Friday, January 7, 2011

यूँ इस तरह....

बिखरे बिखरे यूँ टूटे हुए पत्तो की तरह
ठहरे ठहरे से यु तन्हा तन्हा ….
डगमगाते कदम थिरकते न जाने कहा
खोये खोये उड़ते हुए बादलो की तरह
सहमे सहमे से यु आहट की तरह

चांदनी रातो में पेड़ो की छांव से
गुजरते तूफानों , गरजते बदलो की तरह
कड़ी धुप में कछुवे की तरह
भीगी बारिस में नाचते हुए मोर की तरह

बेवक्त निकले सतरंगी इन्द्र धनुष से
चमकते रंग बिरंगे रंगों की तरह
कभी तीखी तो कभी धुंधली नजरो से
मंजिल की ओर बढ़ते घोड़ो की रेस की तरह
घडी की दौड़ती तीन सुइयों की तरह

यूँ वक़्त के बराबर चलने की होड़ में
कभी डूबते कभी उगते सूरज की तरह
इन भागती सुइयों को थामने की चाह
जैसे माँ के ओर बढ़ते पहले कदमो की तरह
कभी रूकती कभी गिर के संभलती हुई चींटी की तरह
अँधेरे को चीरती रोशनी की तरह
मंजिल को तराशती कश्ती की तरह
किसी स्टेशन को छोडती रेल गाडी की तरह
कभी जैसे डर में धड़कती दिल की तेज़ धड़कन की तरह
पानी को ढूंढते प्यासे कौवे की तरह
ये ज़िन्दगी भी बिना थमे कदमो की तरह
न जाने किस ओर बस चले जा रही है …….